भगवान विष्णु का पहला अवतार जो मनुष्यता के सफर पर पहला कदम था



मत्स्यावतार। 

भगवान विष्णु का पहला अवतार जो मनुष्यता के सफर पर पहला कदम था। फिर हम जल से निकल कर भूमि पर आए, कूर्म अवतार। फिर आता है वराह अवतार अर्थात हम पशु बन गए है,जंगली पशु। वराह इज़ नॉट आ पिग फॉर्म, ईट्स विल्ड बोर। जिन्हें पिग और विल्ड बोर में फर्क नहीं पता वो गूगल कर लें। विल्ड बोर बहुत ही ताकतवर और खतरनाक पशु होता है। शेर भी उससे नहीं भिड़ता, विल्ड बोर उसका भी पेट फाड़ने की क्षमता रखता है। विल्ड बोर को आप कंट्रोल नहीं कर सकते। फिर आता है नरसिंह अवतार। आधा मनुष्य आधा पशु। अर्थात हम मनुष्य बनने की राह पर है मगर पूरी तरह बने नहीं है। अभी भी हमारे भीतर पशु गुण बराबर मात्रा में मौजूद हैं। 

मनुष्य हम तब बनते है जब हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है। ज्ञान किसके पास होता है, ब्राह्मण के पास। तो वामन अवतार आता है, पूर्ण मनुष्य। जब मनुष्यता शुरू होती है तब समाज बनता है। समाज को नियंत्रित न किया जाए तो पशु व्यवहार हावी हो जाता है। समाज को नियंत्रित करने के लिए शक्ति चाहिए। तो जिसके पास ज्ञान है उसे समाज को व्यवस्थित करने के लिए शक्ति की जरूरत होगी। तो परशुराम आते हैं, आधे ब्राह्मण आधे क्षत्रिय। फिर राम आते है, पूर्ण क्षत्रिय। जब राम आते है तो रामराज्य की स्थापना होती है, वर्ण व्यवस्था की आवश्यकता होती जिसमे सबको स्थान मिल सके सबको सम्मान मिल सके। उसके लिए कृष्ण आते हैं जो जन्म से क्षत्रिय है मगर वो गौपालक है। दुग्ध व्यवसाय से जुडे है तो वो वैश्य भी है। वो सारथी भी है अर्थात शूद्र और वो गीता का ज्ञान भी देते हैं अर्थात ब्राह्मण। वर्ण व्यवस्था जब जाति व्यवस्था में बदल जाती है, ऊंच नीच छूत अछूत में बदल जाती है तो मनुष्यता समाप्त होने लगती है। फिर बुद्ध आते हैं जो राज्य, समाज, वर्ण और जाति सब को नकार देते है औऱ अब कल्कि आएंगे जो इस दुनियाँ को ही नकार देंगे। 

ये तो था पौराणिक दर्शन। वैदिक मान्यताओं के अनुसार मनुष्यता की शुरुआत वेदों से होती है। आधुनिक मान्यता भी यही है कि मनुष्यता तभी शुरू हुई जब जब मनुष्य ने अग्नि को नियंत्रित करना सीख लिया। मनुष्य ही एक मात्र ऐसा जीव है पृथ्वी पर जो अग्नि को नियंत्रित कर सकता है। ऋग्वेद के 1000 सूक्तों में लगभग 200 सूक्त अग्नि को समर्पित है। ऋग्वेद के पहले मंडल में पहले सूक्त का पहला ऋग् ही अग्नि को समर्पित है। वैदिक मान्यता में अग्नि के तीन रूप होते हैं। भूमि रूप (यज्ञाग्नि) आकाश रूप( प्रकाश, ध्रुव तारा) औऱ स्वर्ग रूप( सूर्य) 

पृथ्वी पर अग्नि दो रूपों में रहती है। नियंत्रित अग्नि और अनियंत्रित अग्नि। अनियंत्रित अग्नि जंगल की अग्नि होती है, आप उसे कंट्रोल नही कर सकते जैसे विल्ड बोर को कंट्रोल नही कर सकते। दूसरी अग्नि होती है ग्राम की अग्नि। ग्राम में अग्नि तीन भागों में रखी जाती है। एक रसोई के लिए। रसोई की अग्नि प्रज्वलित कर ली अर्थात गृहस्थी की शुरुआत हो गई, समाज की शुरुआत हो गई, मनुष्यता की शुरुआत हो गई। दूसरी अग्नि देवताओं के लिए जो जन्म से जुड़ी है औऱ तीसरी पितरों के लिए जो मृत्यु से जुड़ी है। देवताओं की अग्नि को दीप लक्ष्मी कहते है और दीप लक्ष्मी सन्ध्या के समय प्रज्वलित की जाती है। जहां दीप जलेगा वहां दीपक बनाने के लिए कुम्हार होगा, बाती होगी तो कपास उगाने के लिए किसान होगा, तेल होगा तो तेली होगा, घी होगा तो ग्वाला होगा। सन्ध्या के समय दीप जलना उन ऋषियों राहगीरों, भटके हुए कामगारों के लिए संकेत होता है कि वहाँ ग्राम है, किसान है, कुम्हार है, तेली है। जहां ये सब होंगे वहाँ समाज होगा, मनुष्यता होगी।

घरों से लेकर सरयू के तट पर जलते हुए दीप प्रतीक है पुरुषत्व, समाज, गृहस्थी, आत्मा, संस्कृति, मनुष्यता और मानव सभ्यता के।
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